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Tuesday, June 12, 2012

गुरु का परिभ्रमण

गुरु का परिभ्रमण -->चन्द्र कुंडली अनुसार जब गुरु परिभ्रमण पर रहते है,किस स्थान पर क्या परिणाम देते है,एवं उनसे क्या लाभ या हानि होती है!
जानिये!
प्रथम भाव में-->आर्थिक कष्ट चिंताए घेरती है,यात्रा होती है! परन्तु रिश्तेदारों से मनमुटाव होता है!
ध्दितीय भाव में--> घर में ख़ुशी आती है,अविवाहित का विवाह होता है,एवं ग्रहस्थी वाले के घर बच्चे का जन्म होता है,धन की प्राप्ति होती है!
अर्थात पूर्ण सुख मिलाता है! इसी के साथ शत्रुयो का नाश होता है!
तृतीय भाव में--> धन की कमी होती है,रिश्तेदारों से कटुता एवं कार्य में असफलता मिलाती है,बीमारी का भय रहता है,यात्रा में नुकसान होता है,
इसी के साथ स्थान परिवर्तन होता है!
चतुर्थ भाव में-->जातक किसी मित्र या रिश्तेदार से अपमानित होता है,जातक का गलत कार्य के लिय मन विचलित होता है, एवं चोरी का भय
बना रहता है!
पंचम भाव में-->राजकार्य में सफलता मिलाती है,उच्च अधिकारियो से सम्मान मिलता है,एवं जातक को नये पद की प्राप्ति होती है, सन्तान की प्राप्ति होती है,वेरोजगार को नोकरी मिलती है,घर शुभ कार्य होता है, गुरु के पंचम भाव में रहने से जमीन-जायदाद एवं एनी बैभव विलासिता की क्स्तुयो की खरीददारी होती है!
षष्टम भाव में--> घर में झगड़े होते है,रिश्तेदारों से मान मुटाव की स्थिति उत्पन्न होती है! एवं धन होती हा!
सप्तम भाव में--> परिवार में ख़ुशी आती है,शादी व नये सम्बन्ध होते है,धन की प्राप्ति होती है,बाहन सुख तथा बच्चे का जन्म होता है!
अष्टम भाव में-->कई प्रकार के कष्ट देता है!
नवम भाव में--> ज्ञान के साथ कार्य करने की दक्षता बदती है!
दशम भाव में--> बीमारी धन हानि होती है! जायदाद का नुकसान होता है, स्थान परिवर्तन होता! अर्थात जीवन कष्टमय हो जाता है!
एकादश भाव में--> जीवन में खुशिया आती है,धन की प्राप्ति होती है,भूमिहीन को भूमि मिलती है,अविवाहित का विवाह होता है!एवं ग्रहस्थी वाले
के घर बच्चे का जन्म होता है!
ध्दाद्श भाव में--> कष्टप्रद जीवन होता  है! मानसिक शारीरिक,बोध्दिक कष्ट होता है! 
गुरु विपरीत परिणाम दे तो, गुरु शांति करना हाहिये,एवं गुरु का दान लक्ष्मी-नारायण मंदिर में या किसी गुरु को दे!
गुरु का यह दान है--> पीला कपड़ा, चने की दाल,सोने की वस्तु हल्दी की गाँठ,पीला फुल,पुखराज,पुस्तक,शहद,शक्कर,भूमि छाता इत्यादी देना चहिये! ,





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